BA Semester-1 Hindi Kavya - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2639
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य

अध्याय - 33
गोपालदास नीरज 

(व्याख्या भाग)

मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ

1.
मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ
मरुस्थल मत मेरी मंजिल आसान करो
हैं फूल रोकते, कांटे मुझे चलाते
मरुस्थल, पहाड़ चलने की चाह बढ़ाते
सच कहता हूँ जब मुश्किलें ना होती हैं
मेरे पग तब चलने में भी शर्माते
मेरे संग चलने लगें हवायें जिससे
तुम पथ के कण-कण को तूफान करो

सन्दर्भ - प्रस्तुत कविता गीतकार 'गोपाल दास नीरज' के कविता संग्रह 'गीत जो गाए नहीं' से संकलित है। प्रस्तुत कविता नीरज के जीवत एवं ओजस्वी स्वर से पाठकों को परिचित कराती है।

प्रसंग - प्रस्तुत अंश में कवि संकट व अवरोधों से डटकर मुकाबला करने की सीख देते हुए कहते हैं कि उन्हें सुविधापूर्ण परिस्थितियाँ नीरस प्रतीत होती हैं तथा मार्ग के अवरोध उनके जोश को बढाने का कार्य करते हैं।

व्याख्या - प्रस्तुत अंश 'नीरज' की सुप्रसिद्ध कविता 'मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ से उद्धृत है। कवि प्रकृति को संबोधित करते हुए कह रहा है कि हे नियति! मैं तूफानों व झंझावातों से जूझते हुए आगे बढ़ने वाला राही हूँ। तुम मेरी मुश्किलों को दूरकर मेरी मंजिल तक आसानी से मुझे पहुँचाने का प्रयास मत करो। अर्थात् मैं जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियों से लड़ते हुए उन पर विजय प्राप्त करते हुए अपने लक्ष्य तक पहुँचने की आकांक्षा रखता हूँ।

आगे कवि कहता है कि मार्ग की अनुकूल परिस्थितियाँ अर्थात् फूलों का सौन्दर्य व कोमलता मेरे बढ़ते हुए कदमों को थाम लेते हैं अर्थात् वे मेरी मंजिल तक पहुँचने में अवरोध बन जाते हैं क्योंकि सुखद परिस्थितियाँ ही मानव को मोहपाश में जकड़ लेती हैं। वहीं काँटों रूपी कष्टकर साधन मुझे आगे बढ़ने का नया उत्साह प्रदान करते हैं। मरूस्थल तथा पहाड़ जैसे विकट मार्ग मेरे आगे बढ़ने की चाह को तीव्रता देते हैं। कवि कहते हैं कि यदि उनके जीवन रूपी मार्ग पर बाधाओं व कष्टों का जाल न हो तो उन्हें आगे बढ़ने के वास्तविक आनन्द का अनुभव नहीं होता। नीरज नियति से कहते हैं कि तुम मेरे पथ के प्रत्येक कण को ऐसा भयानक तूफान बना दो जिससे हवाएँ भी मेरा साथ देने को विवश हो जाएँ। अर्थात् मेरा साहस देखकर प्रतिकूल परिस्थितियाँ भी मेरे नियन्त्रण में आ जाएँ। अतः हे नियति! मैं तो तूफानों को चीर कर आगे बढ़ने वाला पथिक हूँ। तुम मेरे मार्ग के व्यवधानों को दूर करने का प्रयास छोड़ दो।

विशेष - प्रस्तुत अंश में कवि जीवन में हार न मानने का भाव प्रस्तुत कर रहा है। कवि के अनुसार प्रतिकूल परिस्थितियाँ ही मानव के व्यक्तित्त्व को निखारने का कार्य करती हैं। भाषा सरल एवं सुबोध है। उर्दू के शब्दों का सहज प्रयोग है यथा मुश्किल, आदी, मंजिल आदि। आम बोल-चाल के शब्दों का प्रयोग अभिव्यंजना शक्ति को प्रदर्शित करता है।

2.
श्रम के जल से राह सदा सिंचती है
गति की मशाल आंधी मैं ही हँसती है
शोलों से ही शृंगार पथिक का होता है
मंजिल की मांग लहू से ही सजती है
पग में गति आती है, छाले छिलने से
तुम पग-पग पर जलती चट्टान धरो

सन्दर्भ - पूर्ववत्।

प्रसंग - प्रस्तुत अंश में कवि श्रम के महत्त्व का वर्णन करते हुए जीवन में कष्टों की उपयोगिता का चित्रण करते दिखाई दे रहे हैं।

व्याख्या - कवि नीरज मानवता को संबोधित कर कहते हैं कि श्रम के सरस जल बिन्दुओं द्वारा ही सफलता की भूमि उर्वर बनती जाती है। मार्ग के जलते हुए अंगारे पथिक का श्रृंगार करते हैं। अतः विपरीत परिस्थितियों में जूझकर उसके व्यक्तित्त्व व चरित्र का विकास होता है मंजिल तक पहुँचने के लिए रक्त बहाना ही पड़ता है। जब तक पाँव में निरंतर चलते रहने के कारण छाले न पड़ जाएँ तब तक पैरों में वांछनीय गति नहीं आ पाती है। अतः हे नियति! तुम मेरे प्रत्येक पग पर जलती हुई चट्टान बिछाकर मेरा मार्ग अवरूद्ध करने का प्रयास करती रहो। मैं तो तूफानों को झेलकर आगे बढ़ने का जज्बा रखता हूँ। अतः तुम मेरा पथ आसान मत बनाओ।

विशेष - अत्यधिक सुविधापूर्ण जीवन व्यक्ति की प्रतिभा को कुष्ठित कर उसे प्रमादी बना देता है। अतः कर्मठ बनकर सफलता के पथ पर आगे बढ़ना ही श्रेयस्कर है।  बिना बलिदान दिए नव-निर्माण का कार्य पूर्ण नहीं होता।

3.
मैं पंथी तूफानों में राह बनाता
मेरा दुनिया से केवल इतना नाता
वह मुझे रोकती है अवरोध बिछाकर
मैं ठोकर उसे लगा कर बढ़ता जाता
मैं ठुकरा सकूँ तुम्हें भी हँसकर जिससे
तुम मेरा मन-मानस पाषाण करो

सन्दर्भ - पूर्ववत्।

प्रसंग - प्रस्तुत अंश में कवि नीरज मार्ग के सभी अवरोधों को ठोकर मार कर सफलता के शिखर तक पहुँचने का मूल मंत्र प्रदान कर रहे हैं।

व्याख्या - नीरज कहते हैं कि मैं वह साहसी पथिक हूँ जो तूफानों को चीर कर भी अपना मार्ग ढूँढ लेता है। संसार के साथ तो मेरा बस इतना ही सम्बन्ध है कि वह मेरी हर उपलब्धि पर मेरा उपहास करता है। मेरे मार्ग पर अवरोध उत्पन्न कर निर्दिष्ट पथ पर आगे बढ़ने से रोकने का प्रयास करता है। परन्तु मैं संसार के व्यवहार से व्यथित हुए बिना उसे ठोकर मारकर लक्ष्य की ओर बढ़ जाता हूँ। अतः संसार के उपालम्भ मुझे प्रभावित नहीं कर पाते और मैं मनोयोग से निश्छल होकर अपने गंतव्य की ओर चलता रहता हूँ। अंत में कवि कहता है कि हे नियति! मेरे ऊपर तुम्हारे द्वारा किए गए आघातों का भी कोई प्रभाव न पड़े मुझे ऐसा कठोर वज्र बना दो। अतः मैं नियति को भी हँसते हुए ठुकरा कर आगे बढ़ सकूँ। इसलिए तुम मेरे कोमल मन को भी पत्थर के समान कठोर बना दो। जिससे मुझ पर किसी भी प्रहार का कोई प्रभाव न पड़े।
विशेष - प्रस्तुत अंश में कवि का विद्रोही स्वभाव सामने आता है। कवि संसार की रीति का भी चित्रण करता है जहाँ वो प्रत्येक व्यक्ति के मार्ग में कंटक बिखेरता है। कवि संसार की स्वार्थी प्रवृत्ति पर व्यंग्य साधते दिखाई देते हैं।

तिमिर का छोर

1.
है नहीं दिखता तिमिर का छोर !
आँख की गति है जहाँ तक
तम अरे, बस, तम वहाँ तक
दूर धुँधली दिख रही पर सित कफ़न की कोर।
है नहीं दिखता तिमिर का छोर !

सन्दर्भ - प्रस्तुत अंश कवि गोपाल दास 'नीरज' की सुप्रसिद्ध कविता 'तिमिर का छोर से उद्धृत है। यह कविता 'नीरज' के कविता संग्रह 'गीत जो गाए नहीं' में संकलित है।

प्रसंग - प्रस्तुत अंश में कवि नीरज मानव जीवन में व्याप्त निराशा के अंधकार का चित्रण कर रहे हैं।

व्याख्या - कवि नीरज आज के मानव के त्रासद जीवन पर दृष्टि डालते हुए कहते हैं कि संसार में निराशा व दुःख के अंधकार ने सम्पूर्ण जीवन को ढक लिया है। इस गहन अंधकार का साम्राज्य इतना विस्तीर्ण है कि इसके ओर-छोर का कहीं कुछ पता नहीं चल पा रहा है। आज मानव की दृष्टि जितनी दूर तक जाती है उसे मात्र अंधकार ही अंधकार दिखाई देता है। ऐसा प्रतीत होता है कि निराशा के अंधकार में डूब कर मानव की सम्पूर्ण रसमय चेतना विलुप्त होती जा रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि दूर से दिखाई देती मृत्यु की धुंधली तस्वीर ही उसके लिए एकमात्र सत्य बनकर रह गई है। चारों ओर परिव्याप्त .. इस अंधकार का स्रोत भी नहीं दिखाई दे रहा है। इस अंधकार ने सम्पूर्ण समाज को अपने अंक में भर लिया है।

विशेष - प्रस्तुत अंश में कवि का निराशावादी दृष्टिकोण मुखरित हुआ है। आज के मानव जीवन में अनेकानेक कुंठाओं व ग्रंथियों ने आकार लेकर उसकी बौद्धिक चेतना को सीमित कर दिया है। भूख, गरीबी, बेकारी झेलते मानव को कहीं कोई प्रकाश की किरण दिखाई नहीं दे रही है।

2.
मुक्ति-पथ इसमें छुपा है
और जीवन-अथ छुपा है
क्योंकि पहले फूटती है ज्योति तम की ओर
है नहीं दिखता तिमिर का छोर!

सन्दर्भ - पूर्ववत्।

प्रसंग - प्रस्तुत अंश में कवि नीरज मानव मात्र को सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने की सीख दे रहे हैं।

व्याख्या - कवि नीरज मानव को संबोधित करते हुए कहते हैं कि संघर्ष में ही मानव जीवन का नवीन अर्थ छिपा हुआ है। प्राचीन काल से ही मानव अपने अपराजेय साहस के बल पर विकट परिस्थितियों) पर विजय प्राप्त करता रहा है। हमें इस अंधकार के आगे घुटने नहीं टेकने चाहिए वरन् इससे लड़कर प्रकाश के अस्तित्त्व को स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए। अंधकार चाहे कितना भी गहन व शक्तिशाली क्यों न हो प्रकाश का एक बिन्दु भी उसे मात देकर अपनी उपस्थिति का शंखनाद कर जाता है। हमें जीवन के इसी संदेश को अपनाकर सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ लक्ष्य की दिशा में अग्रसर होना चाहिए। यही मानव मात्र के लिए मुक्ति का नवीन मार्ग है। इस पर चलकर ही वह गंतव्य तक पहुँच सकता है।

विशेष - प्रस्तुत अंश में कवि नीरज मानव को अपने आत्मसंघर्ष में विजयी होने का मार्ग दिखा रहे हैं। प्रकाश की एक छोटी-सी किरण ही अंधकार के साम्राज्य को समाप्त करने का सामर्थ्य रखती है। रूपक तथा अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है। भाषा सरल, सहज तथा तत्सम प्रधान है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- भारतीय ज्ञान परम्परा और हिन्दी साहित्य पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा में शुक्लोत्तर इतिहासकारों का योगदान बताइए।
  3. प्रश्न- प्राचीन आर्य भाषा का परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
  4. प्रश्न- मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
  5. प्रश्न- आधुनिक आर्य भाषा का परिचय देते हुए उनकी विशेषताएँ बताइए।
  6. प्रश्न- हिन्दी पूर्व की भाषाओं में संरक्षित साहित्य परम्परा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  7. प्रश्न- वैदिक भाषा की ध्वन्यात्मक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  8. प्रश्न- हिन्दी साहित्य का इतिहास काल विभाजन, सीमा निर्धारण और नामकरण की व्याख्या कीजिए।
  9. प्रश्न- आचार्य शुक्ल जी के हिन्दी साहित्य के इतिहास के काल विभाजन का आधार कहाँ तक युक्तिसंगत है? तर्क सहित बताइये।
  10. प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  11. प्रश्न- आदिकाल के साहित्यिक सामग्री का सर्वेक्षण करते हुए इस काल की सीमा निर्धारण एवं नामकरण सम्बन्धी समस्याओं का समाधान कीजिए।
  12. प्रश्न- हिन्दी साहित्य में सिद्ध एवं नाथ प्रवृत्तियों पूर्वापरिक्रम से तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  13. प्रश्न- नाथ सम्प्रदाय के विकास एवं उसकी साहित्यिक देन पर एक निबन्ध लिखिए।
  14. प्रश्न- जैन साहित्य के विकास एवं हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में उसकी देन पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
  15. प्रश्न- सिद्ध साहित्य पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- आदिकालीन साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- हिन्दी साहित्य में भक्ति के उद्भव एवं विकास के कारणों एवं परिस्थितियों का विश्लेषण कीजिए।
  18. प्रश्न- भक्तिकाल की सांस्कृतिक चेतना पर प्रकाश डालिए।
  19. प्रश्न- कृष्ण काव्य परम्परा के प्रमुख हस्ताक्षरों का अवदान पर एक लेख लिखिए।
  20. प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  21. प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
  22. प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  23. प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
  24. प्रश्न- भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  25. प्रश्न- उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल ) की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, काल सीमा और नामकरण, दरबारी संस्कृति और लक्षण ग्रन्थों की परम्परा, रीति-कालीन साहित्य की विभिन्न धारायें, ( रीतिसिद्ध, रीतिमुक्त) प्रवृत्तियाँ और विशेषताएँ, रचनाकार और रचनाएँ रीति-कालीन गद्य साहित्य की व्याख्या कीजिए।
  26. प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य प्रवृत्तियों का परिचय दीजिए।
  27. प्रश्न- हिन्दी के रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
  28. प्रश्न- बिहारी रीतिसिद्ध क्यों कहे जाते हैं? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
  29. प्रश्न- रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है?
  30. प्रश्न- आधुनिक काल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
  31. प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
  33. प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- भारतेन्दु युग के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
  35. प्रश्न- भारतेन्दु युग के गद्य की विशेषताएँ निरूपित कीजिए।
  36. प्रश्न- द्विवेदी युग प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
  37. प्रश्न- द्विवेदी युगीन कविता के चार प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये। उत्तर- द्विवेदी युगीन कविता की चार प्रमुख प्रवृत्तियां निम्नलिखित हैं-
  38. प्रश्न- छायावादी काव्य के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  39. प्रश्न- छायावाद के दो कवियों का परिचय दीजिए।
  40. प्रश्न- छायावादी कविता की पृष्ठभूमि का परिचय दीजिए।
  41. प्रश्न- उत्तर छायावादी काव्य की विविध प्रवृत्तियाँ बताइये। प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नयी कविता, नवगीत, समकालीन कविता, प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- प्रयोगवादी काव्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
  43. प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की सामान्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
  44. प्रश्न- हिन्दी की नई कविता के स्वरूप की व्याख्या करते हुए उसकी प्रमुख प्रवृत्तिगत विशेषताओं का प्रकाशन कीजिए।
  45. प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  46. प्रश्न- गीत साहित्य विधा का परिचय देते हुए हिन्दी में गीतों की साहित्यिक परम्परा का उल्लेख कीजिए।
  47. प्रश्न- गीत विधा की विशेषताएँ बताते हुए साहित्य में प्रचलित गीतों वर्गीकरण कीजिए।
  48. प्रश्न- भक्तिकाल में गीत विधा के स्वरूप पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  49. अध्याय - 13 विद्यापति (व्याख्या भाग)
  50. प्रश्न- विद्यापति पदावली में चित्रित संयोग एवं वियोग चित्रण की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  51. प्रश्न- विद्यापति की पदावली के काव्य सौष्ठव का विवेचन कीजिए।
  52. प्रश्न- विद्यापति की सामाजिक चेतना पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  53. प्रश्न- विद्यापति भोग के कवि हैं? क्यों?
  54. प्रश्न- विद्यापति की भाषा योजना पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
  55. प्रश्न- विद्यापति के बिम्ब-विधान की विलक्षणता का विवेचना कीजिए।
  56. अध्याय - 14 गोरखनाथ (व्याख्या भाग)
  57. प्रश्न- गोरखनाथ का संक्षिप्त जीवन परिचय दीजिए।
  58. प्रश्न- गोरखनाथ की रचनाओं के आधार पर उनके हठयोग का विवेचन कीजिए।
  59. अध्याय - 15 अमीर खुसरो (व्याख्या भाग )
  60. प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  63. प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
  64. प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
  65. अध्याय - 16 सूरदास (व्याख्या भाग)
  66. प्रश्न- सूरदास के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- "सूर का भ्रमरगीत काव्य शृंगार की प्रेरणा से लिखा गया है या भक्ति की प्रेरणा से" तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
  68. प्रश्न- सूरदास के श्रृंगार रस पर प्रकाश डालिए?
  69. प्रश्न- सूरसागर का वात्सल्य रस हिन्दी साहित्य में बेजोड़ है। सिद्ध कीजिए।
  70. प्रश्न- पुष्टिमार्ग के स्वरूप को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए?
  71. प्रश्न- हिन्दी की भ्रमरगीत परम्परा में सूर का स्थान निर्धारित कीजिए।
  72. अध्याय - 17 गोस्वामी तुलसीदास (व्याख्या भाग)
  73. प्रश्न- तुलसीदास का जीवन परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  74. प्रश्न- तुलसी की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  75. प्रश्न- अयोध्याकांड के आधार पर तुलसी की सामाजिक भावना के सम्बन्ध में अपने समीक्षात्मक विचार प्रकट कीजिए।
  76. प्रश्न- "अयोध्याकाण्ड में कवि ने व्यावहारिक रूप से दार्शनिक सिद्धान्तों का निरूपण किया है, इस कथन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  77. प्रश्न- अयोध्याकाण्ड के आधार पर तुलसी के भावपक्ष और कलापक्ष पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- 'तुलसी समन्वयवादी कवि थे। इस कथन पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- तुलसीदास की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए।
  80. प्रश्न- राम का चरित्र ही तुलसी को लोकनायक बनाता है, क्यों?
  81. प्रश्न- 'अयोध्याकाण्ड' के वस्तु-विधान पर प्रकाश डालिए।
  82. अध्याय - 18 कबीरदास (व्याख्या भाग)
  83. प्रश्न- कबीर का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
  84. प्रश्न- कबीर के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  85. प्रश्न- कबीर के काव्य में सामाजिक समरसता की समीक्षा कीजिए।
  86. प्रश्न- कबीर के समाज सुधारक रूप की व्याख्या कीजिए।
  87. प्रश्न- कबीर की कविता में व्यक्त मानवीय संवेदनाओं पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- कबीर के व्यक्तित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  89. अध्याय - 19 मलिक मोहम्मद जायसी (व्याख्या भाग)
  90. प्रश्न- मलिक मुहम्मद जायसी का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  91. प्रश्न- जायसी के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  92. प्रश्न- जायसी के सौन्दर्य चित्रण पर प्रकाश डालिए।
  93. प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  94. अध्याय - 20 केशवदास (व्याख्या भाग)
  95. प्रश्न- केशव को हृदयहीन कवि क्यों कहा जाता है? सप्रभाव समझाइए।
  96. प्रश्न- 'केशव के संवाद-सौष्ठव हिन्दी साहित्य की अनुपम निधि हैं। सिद्ध कीजिए।
  97. प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षेप में जीवन-परिचय दीजिए।
  98. प्रश्न- केशवदास के कृतित्व पर टिप्पणी कीजिए।
  99. अध्याय - 21 बिहारीलाल (व्याख्या भाग)
  100. प्रश्न- बिहारी की नायिकाओं के रूप-सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
  101. प्रश्न- बिहारी के काव्य की भाव एवं कला पक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  102. प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- बिहारी ने किस आधार पर अपनी कृति का नाम 'सतसई' रखा है?
  104. प्रश्न- बिहारी रीतिकाल की किस काव्य प्रवृत्ति के कवि हैं? उस प्रवृत्ति का परिचय दीजिए।
  105. अध्याय - 22 घनानंद (व्याख्या भाग)
  106. प्रश्न- घनानन्द का विरह वर्णन अनुभूतिपूर्ण हृदय की अभिव्यक्ति है।' सोदाहरण पुष्टि कीजिए।
  107. प्रश्न- घनानन्द के वियोग वर्णन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  108. प्रश्न- घनानन्द का जीवन परिचय संक्षेप में दीजिए।
  109. प्रश्न- घनानन्द के शृंगार वर्णन की व्याख्या कीजिए।
  110. प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
  111. अध्याय - 23 भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
  112. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की शैलीगत विशेषताओं को निरूपित कीजिए।
  113. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की भाव-पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  114. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की भाषागत विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
  115. प्रश्न- भारतेन्दु जी के काव्य की कला पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए। उत्तर - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की कलापक्षीय कला विशेषताएँ निम्न हैं-
  116. अध्याय - 24 जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग )
  117. प्रश्न- सिद्ध कीजिए "प्रसाद का प्रकृति-चित्रण बड़ा सजीव एवं अनूठा है।"
  118. प्रश्न- जयशंकर प्रसाद सांस्कृतिक बोध के अद्वितीय कवि हैं। कामायनी के संदर्भ में उक्त कथन पर प्रकाश डालिए।
  119. अध्याय - 25 सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (व्याख्या भाग )
  120. प्रश्न- 'निराला' छायावाद के प्रमुख कवि हैं। स्थापित कीजिए।
  121. प्रश्न- निराला ने छन्दों के क्षेत्र में नवीन प्रयोग करके भविष्य की कविता की प्रस्तावना लिख दी थी। सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  122. अध्याय - 26 सुमित्रानन्दन पन्त (व्याख्या भाग)
  123. प्रश्न- पंत प्रकृति के सुकुमार कवि हैं। व्याख्या कीजिए।
  124. प्रश्न- 'पन्त' और 'प्रसाद' के प्रकृति वर्णन की विशेषताओं की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए?
  125. प्रश्न- प्रगतिवाद और पन्त का काव्य पर अपने गम्भीर विचार 200 शब्दों में लिखिए।
  126. प्रश्न- पंत के गीतों में रागात्मकता अधिक है। अपनी सहमति स्पष्ट कीजिए।
  127. प्रश्न- पन्त के प्रकृति-वर्णन के कल्पना का अधिक्य हो इस उक्ति पर अपने विचार लिखिए।
  128. अध्याय - 27 महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
  129. प्रश्न- महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का उल्लेख करते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
  130. प्रश्न- "महादेवी जी आधुनिक युग की कवियत्री हैं।' इस कथन की सार्थकता प्रमाणित कीजिए।
  131. प्रश्न- महादेवी वर्मा का जीवन-परिचय संक्षेप में दीजिए।
  132. प्रश्न- महादेवी जी को आधुनिक मीरा क्यों कहा जाता है?
  133. प्रश्न- महादेवी वर्मा की रहस्य साधना पर विचार कीजिए।
  134. अध्याय - 28 सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' (व्याख्या भाग)
  135. प्रश्न- 'अज्ञेय' की कविता में भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों समृद्ध हैं। समीक्षा कीजिए।
  136. प्रश्न- 'अज्ञेय नयी कविता के प्रमुख कवि हैं' स्थापित कीजिए।
  137. प्रश्न- साठोत्तरी कविता में अज्ञेय का स्थान निर्धारित कीजिए।
  138. अध्याय - 29 गजानन माधव मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
  139. प्रश्न- मुक्तिबोध की कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  140. प्रश्न- मुक्तिबोध मनुष्य के विक्षोभ और विद्रोह के कवि हैं। इस कथन की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
  141. अध्याय - 30 नागार्जुन (व्याख्या भाग)
  142. प्रश्न- नागार्जुन की काव्य प्रवृत्तियों का विश्लेषण कीजिए।
  143. प्रश्न- नागार्जुन के काव्य के सामाजिक यथार्थ के चित्रण पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
  144. प्रश्न- अकाल और उसके बाद कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
  145. अध्याय - 31 सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' (व्याख्या भाग )
  146. प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  147. प्रश्न- 'धूमिल की किन्हीं दो कविताओं के संदर्भ में टिप्पणी लिखिए।
  148. प्रश्न- सुदामा पाण्डेय 'धूमिल' के संघर्षपूर्ण साहित्यिक व्यक्तित्व की विवेचना कीजिए।
  149. प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
  150. प्रश्न- धूमिल की रचनाओं के नाम बताइये।
  151. अध्याय - 32 भवानी प्रसाद मिश्र (व्याख्या भाग)
  152. प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र के काव्य की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  153. प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र की कविता 'गीत फरोश' में निहित व्यंग्य पर प्रकाश डालिए।
  154. अध्याय - 33 गोपालदास नीरज (व्याख्या भाग)
  155. प्रश्न- कवि गोपालदास 'नीरज' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  156. प्रश्न- 'तिमिर का छोर' का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
  157. प्रश्न- 'मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ' कविता की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए।

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